Saturday, February 12, 2011

about saibaba

हे साईबाबा आप को सत-सत प्रणाम हे! मे आप say नाराज़ नही हु मे तो इन भक्तो की सोच पर सोचता हु की जिस साईं ने जिन्दगी भर अपना जीवन गरीबी मे काटा जिन्हें इस मोह माया से कोई सरोकार नही था वो आज मूर्ति बन कर बैठे है और उन्हें भक्त सोना chandhi  जैसी चीजों से तोल रहे है ये कैसा अन्धविश्वास है जो लाइन के पीछे लाइन वाली कहानी को सार्थक कर रहा है अगर ये पैसा साईं बाबा के गरिएब bhaktho  मे बाते तो  कितने लोग इस से प्रभवित होंगे काश मे इस लायक हो जाओ की एक मंदिर ऐसा भी बनवा सकू जिसमे साईं बाबा की वो ही मूर्ति होगी जैसे वो रहते थे और भक्तो के कल्याण करते थे ! मेरा आशय केबल इतना है की कोई साईबाबा के आंसू भी देखे की वो सब देख कर भी कुछ नही कह पा रहे क्योंकि वो अब पत्थर  है पर दोस्तों ये सिस्टम बदलने के लिए कोई तो पहल करे...................जय साईबाबा